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________________ समयसार ] [ ४५ उसका कारण उसके अन्दर विद्यमान ज्ञान और वैराग्य का बल ही है। इस बात को निर्जरा अधिकार में बहुत ही विस्तार से स्पष्ट किया गया है । उक्त संदर्भ में कविवर बनारसीदासजी के कतिपय छन्द द्रष्टव्य हैं : "महिमा सम्यग्ज्ञान को, पर विराग बल जोइ । क्रिया करत फल भुंजतें, करम बंध नहिं होइ॥ पूर्व उद सन बंध, विष भोगवं समकिती। करे न नूतन बंध, महिमा ग्यान विराग की । ग्यानी ग्यानमगन रहै, रागादिक मल खोइ । चित उदास करनी कर, करमबंष नहिं होइ । मूढ़ करम को करता होवे । फल अभिलाष घर फल जोवे ।। ग्यानी क्रिया कर फलसूनी। लगे न लेप निरजरा दूनी ॥" परपदार्थ एवं रागभाव में रंचमात्र भी एकत्वबुद्धि नहीं रखनेवाले एवं अपने प्रात्मा को मात्र ज्ञायकस्वभावी जाननेवाले आत्मज्ञानी सम्यग्दृष्टि धर्मात्मा को संबोधित करते हुए आचार्यदेव कहते हैं : "एदम्हि रवो पिच्चं संतुटो होहि णिच्चमेवम्हि । एवेण होहि तित्तो होहदि तुह उत्तमं सोक्खं ॥ हे आत्मन् ! तू इस ज्ञानानन्दस्वभावी भगवान आत्मा में ही नित्य रत रह, इसमें ही नित्य सन्तुष्ट रह, इससे ही तृप्त हो- ऐसा करने से तुझे उत्तम सुख की प्राप्ति होगी।" इसप्रकार निर्जराधिकार समाप्त कर अब बंधाधिकार में कहते हैं कि जिसप्रकार धूल भरे स्थान में तेल लगाकर विभिन्न शस्त्रों से व्यायाम करनेवाले पुरुष को सचित्त-अचित्त केले आदि वृक्षों के छिन्नभिन्न करने पर जो धूल चिपटती है, उसका कारण तेल की चिकनाहट ही है, धूल और शारीरिक चेष्टायें नहीं। उसीप्रकार हिंसादि पापों में ' समयसार नाटक, निराद्वार, छन्द ३, ६, ३६ व ४३ २ समयसार, गाया २०६
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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