SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 19
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्राचार्य कुन्दकुन्द ] [ १e इसके बाद पूर्वविदेह जाने की कथा भी पूर्ववत् वरिंगत है । इसी से मिलती-जुलती कथा 'आराधना कथाकोश' में प्राप्त होती है । आचार्य देवसेन, आचार्य जयसेन एवं भट्टारक श्रुतसागर जैसे दिग्गज आचार्यों एवं विद्वानों के सहस्राधिक वर्ष प्राचीन उल्लेखों एवं उससे भी प्राचीन प्रचलित कथाओं की उपेक्षा सम्भव नहीं है, विवेकसम्मत भी नहीं कही जा सकती । अत: उक्त उल्लेखों और कथाओं के आधार पर यह निःसंकोच कहा जा सकता है कि प्राचार्य कुन्दकुन्द दिगम्बर आचार्य परम्परा के चूड़ामणि हैं । वे विगत दो हजार वर्षों में हुए दिगम्बर आचार्यो, सन्तों, प्रात्मार्थी विद्वानों एवं आध्यात्मिक साधकों के आदर्श रहे हैं, मार्गदर्शक रहे हैं, भगवान महावीर और गौतम गणधर के समान प्रातःस्मरणीय रहे हैं, कलिकालसवंज्ञ के रूप में स्मरण किये जाते रहे हैं। उन्होंने इसी भव में सदेह विदेहक्षेत्र जाकर सीमंधर अरहन्त परमात्मा के दर्शन किए थे, उनकी दिव्यध्वनि का साक्षात् श्रवरण किया था, उन्हें चारणऋद्धि प्राप्त थी। तभी तो कविवर वृन्दावनदास को कहना पड़ा : "हुए हैं न होहिगे मुनिन्द कुन्दकुन्द से । ' विगत दो हजार वर्षों में कुन्दकुन्द जैसे प्रतिभाशाली, प्रभावशाली, पीढ़ियों तक प्रकाश बिखेरनेवाले समर्थ प्राचार्य न तो हुए ही हैं और पंचम काल के अन्त तक होने की संभावना भी नहीं है ।" यहाँ एक प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि यदि आचार्य कुन्दकुन्द सदेह विदेह गये थे, उन्होंने सीमन्धर परमात्मा के साक्षात् दर्शन किए थे, उनकी दिव्यध्वनि का श्रवरण किया था; तो उन्होंने इस घटना का स्वयं उल्लेख क्यों नहीं किया ? यह कोई साधारण बात तो थी नहीं, जिसकी यों हो उपेक्षा कर दी गई । १ प्रवचनसार परमागम, पीठिका, छन्द ६६
SR No.010068
Book TitleKundakunda Aur Unke Panch Parmagama
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHukamchand Bharilla
PublisherTodarmal Granthamala Jaipur
Publication Year1988
Total Pages84
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy