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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र १६-२० विविक्तो देशः । १, ३, १६ । विवित्तो निर्जनः ॥ १६ ॥ । रात्रियामस्तुरीयः कालः । १, ३, २० ।
रात्रेामो रात्रियामः प्रहरस्तुरीयश्चतुर्थः काल इति । तद्वशाद् विषयोपरतं चित्तं प्रसन्नमवधत्ते ॥२०॥
___ वह विशेष देश और काल कौन-से हैं जिनमें एकाग्रता उप्पन्न होती है यह कहते हैं
विविक्त [अर्थात् निर्जन ] देश [ एकाग्रता के लिए आवश्यक ] है । विविक्त [का अर्थ] निर्जन है। [स्थान की निर्जनता, चित्त की एकाग्रतासम्पादन के लिए अत्यन्त आवश्यक है ] ॥१९॥
___ रात्रि का चौथा पहर [ ब्राह्ममुहूर्त का काल चित्त की एकाग्रता के लिए सबसे अधिक उपयुक्त ] काल है।
रात्रि का याम रात्रियाम [ यह षष्ठी तत्पुरुष समास ] है। [याम का अर्थ ] प्रहर है । तुरीय [ का अर्थ ] चतुर्थ । [ रात्रि का चतुर्थ पहर, अर्थात् ब्राह्ममुहूर्त का समय चित्त को एकाग्रता का उपयुक्त ] काल है । उस [ समय] के प्रभाव से विषयो से विरत और निर्मल चित्त एकान हो जाता है। [वह समय काव्य निर्माण के लिए अत्यन्त उपयोगी है।]
ब्राह्ममुहूर्त का समय काव्य रचना श्रादि बौद्धिक कार्यों के लिए विशेष रूप से उपयुक्त और अनुकूल है। उसमें नवीन भावों की स्फूर्ति होती है। इसलिए महाकवि कालिदास ने
'पश्चिमाद् यामिनीयामात् प्रसादमिव चेतना।" यह पद लिखा है। महाकवि माघ ने भी लिखा है कि
गहनमपररात्रप्राप्तबुद्धिप्रसादाः
कवय इव महीपाश्चिन्तयन्त्यर्थजातम् ॥२०॥ इस प्रकार इस अध्याय के इन प्रारम्भिक बीस सूत्रो में काव्य के साधनों
' रघुवंश १७,१॥ २ माघ ११,६।