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________________ ३८ ] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तौ इति श्री पण्डितवरचा मनविरचितकाव्यालङ्कारसूत्रवृत्तौ 'शारीरे' प्रथमेऽधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः । अधिकारिचिन्ता रीतिनिश्चयश्च । [ सूत्र २२ पाश्चात्य 'रीति' विवेचन न केवल भारतीय साहित्य में अपितु पाश्चात्य साहित्य मे भी 'रीतियों' का विवेचन बडे सुन्दर ढंग से किया गया है। पाश्चात्य दर्शन तथा साहित्य के जन्मदाता प्रसिद्ध यूनानी विद्वान् ' अरस्तू' ने साहित्य शास्त्र सम्वन्धी दो महत्वपूर्ण है ग्रन्थ लिखे हैं जिनके नाम 'रेटारिक्स' तथा 'पोइटिक्स' है । इनमे से 'रेटारिक्स' के तृतीय खण्ड में रीतियों का विस्तारपूर्वक विवेचन किया गया है । अरस्तू ने 'साहित्यिक' तथा 'वादात्मक' दो प्रकार की रीतियों का विवेचन किया है। हमारे यहा 'साहित्यिक' रीतियों का विवेचन साहित्यशास्त्र मे और 'वादात्मक' रीतियों का विवेचन न्याय शास्त्र में किया गया है । 'अरस्तू' के बाद 'डिमेट्रियस' नामक एक और प्रसिद्ध यूनानी श्रालङ्कारिक ३०० ईसवी पूर्व हुए हैं। उन्होने 'श्रान स्टाइल' [On Style] नामक उत्कृष्ट ग्रन्थ रीति ग्रन्थ मे चार प्रकार की रीतिया मानी हैं श्रीमदाचार्य विश्वेश्वर सिद्धान्त शिरोमणिविरचिताया काव्यालङ्कारदीपिकाया हिन्दीव्याख्याया प्रथमे शारीराऽधिकरणे द्वितीयोऽध्यायः समाप्तः । १ प्रसन्न मार्ग [Plain Style], २ उदात्त मार्ग [Stately Style] ३ मटण मार्ग [Polished Style], ४ ऊर्जस्वी मार्ग [ Powerful Style] हमारे यहा जैसे 'कुन्तक' ने अपने मार्गों के साथ अथवा वामन ने अपनी रीतियों के साथ गुणो का सम्बन्ध प्रदर्शित किया है, इसी प्रकार 'डिमेट्रियस' ने भी अपने मार्गों के साथ गुणो का सम्बन्ध दिखलाया है। उन गुणों के अभाव में चार दूपित रीतिया उत्पन्न हो जाती हैं १ शिथिल मार्ग [Frigid Style], २ कृत्रिम मार्ग [Affected Style], ३ नीरस मार्ग [Arid Style] ४ श्रननुकूल मार्ग [ Disagreeable Style] श्री पडितवामनविरचित 'काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ति' में प्रथम 'शारीराधिकरण' में द्वितीय अध्याय समाप्त हुत्रा । श्रधिकारिचिन्ता और रीतिनिश्चय समाप्त हुआ ।
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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