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________________ [३३ सूत्र २२] प्रथमाधिकरणे द्वितीयोऽध्याय वचसि यमधिगम्य स्पन्दते वाचकश्रीवितथमवितथस्व यत्र वस्तु प्रयाति । उदयति हि स ताहा क्वापि वैदर्भरीतौ सहृदयहृदयानां रञ्जकः कोऽपि पाकः ॥२१।। साऽपि वैदर्भी तात्स्थ्यात् । १, २, २२ । सापीयमर्थगुणसम्पद् वैदर्भीत्युक्ता । तास्थ्यादित्युपचारतो व्यवहार दर्शयति ॥ २२ ॥ ___जिस [वैदर्मी रीति ] को [ काव्य रूप] वाक्य में प्राप्त करके शब्द सौन्दर्य [वाचकली.] थिरकने लगता है, जहां [वैदर्भी रीति में पहुंच कर ] नीरस [वितय वस्तु भी सरप्त अवितय ] हो उठती हैं, सहृदयों के हृदयों को बाह्नादित करने वाला कुछ ऐसा अनिर्वचनीय शब्दुपाक वैदर्भी रीति में [हो] कहीं उदय हो जाता है. I. [ जिसके कारण शब्द शोभा मानों नाचने ली लगती है और नीरस वस्तु भी सरस हो जाती है । टीकाकार ने विवय शब्द का अर्थ नीरस और अवितथ शब्द का अर्थ सरस किया है। ] ॥२॥ उस [वैदर्भी रीति ] में रहने के कारण वह [अर्थगुण सम्पत्ति भी ]' [उपचार या लक्षणा से ] वैदर्भी [ नाम से कही जा सकती है। वह अर्थगुण सम्पत्ति भी वैदर्भी [ नाम से ] कही गई है । [ सूत्र में प्रयुक्त 'तारस्थ्यात्' इस पद से ] उस [ वैदर्भी रीति ] में स्थित होने के कारण [अर्थसम्पत्ति भी वैदर्भी नाम से कही गई है ] | इस प्रकार उपचार [ लक्षणा] से व्यवहार दिखलाते हैं। किसान लोग खेतों की रक्षा के लिए उनसे मचान बना कर और उन पर बैठ कर अनाज आदि को खाने वाले पक्षी आदि को उडाते हैं। वहा पक्षियों को उड़ाने की आवाज मचानों पर स्थित पुरुष देते है परन्तु वहा 'मञ्चा: क्रोशन्ति-मचान पुकारते हैं। इस प्रकार का व्यवहार होता है । यह व्यवहार 'तास्थ्य सम्बन्ध से लक्षणा वृत्ति के द्वारा गौण रूप से होता है । वहा जैसे 'ताल्थ्य' सम्बन्ध से मञ्चस्थ पुरुषो के लिए मञ्च शब्द का औपचारिक प्रयोग होता है, इसी प्रकार यहा वैदी रीति में स्थित अर्थगुणसम्पत्ति के लिए भी उपचार अर्थात् लक्षणा से वैदर्भी शब्द का प्रयोग किया गया है। यह ग्रन्थकार का अभिप्राय है। भामहकालीन दो मार्गों का सिद्धान्तवामन ने इस.अध्याय मे 'वैदर्भी', 'पाञ्चालो' तथा 'गौड़ी' इन तीन
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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