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________________ २४] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती [सूत्र १२ समस्तात्युद्धटपदामोजःकान्तिगुणान्विताम् । गौड़ीयामिति गायन्ति रीति रीतिविचक्षणाः ।। उदाहरणम, 'दोर्दण्डाञ्चितचन्द्रशेखरधनुईण्डावभङ्गोद्यतप्रकारध्वनिरार्थवालचरितप्रस्तावनाडिण्डिमः । द्राक्पर्यस्तफपालसम्पुटमिलद्ब्रह्माण्डमाण्डोदरभ्राम्यत्पिण्डितचण्डिमा कथमहो नाद्यापि विश्राम्यति ।। १२ ॥ गुणों से समन्वित रीति को रीति [ शास्त्र] के पण्डित 'गौडीया रीति कहते हैं। [गौडीया रीति का ] उदाहरण [ निम्न श्लोक है ] महाकवि भवभूतिनिर्मित 'महावीरचरितम्' नाटक के प्रथमात्र में रामचन्द्र के द्वारा शिव-धनुप के तोड दिए जाने के बाद यह लक्ष्मण की उक्ति है। लक्ष्मण कह रहे हैं कि रामचन्द्र जी के तोडे हुए धनुष का भयङ्कर शब्द अब तक भी शान्त नहीं हुश्रा है। श्लोक का शब्दार्थ इस प्रकार है [श्री रामचन्द्र जी के द्वारा अनायास ] हाथ में उटाए हुए[चन्द्रशेखर] शिव जी के धनुष के दण्ड के टूटने से उत्पन्न हुआ और आर्य [रामचन्द्र जी] के बाल चरित्र रूप [उनके भावी जीवन की प्रस्तावना का उद्घोषक , टकार-ध्वनि [ उस मीपण टङ्कार के कारण ] एक्दम कांप उठने [दाक् झटिति पर्यस्ते चलिते ] वाले [पृथ्वी तथा श्राकाश रूप छोटे-छोटे ] कपाल-संपुटों में सीमित [ छोटे से ] ब्रह्माण्ड रूप भाण्ड [घडा आदि रूप वर्तन ] के भीतर घूमने के कारण और अधिक भयङ्करता को प्राप्त होकर अब तक भी शान्त नहीं हुआ है। यह पाश्र्घ्य है। इसमें बन्ध की गाढ़ता और पदों की उज्ज्वलता के कारण 'श्रोज' और 'कान्ति' नामक दोनों गुण स्पष्ट हैं । इसलिए ग्रन्थकार ने इसे 'गौड़ी' रीति के उदाहरण रूप में यहा प्रस्तुत किया है |॥ १२ ॥ इसके वाट क्रमप्राप्त तीसरी पाञ्चाली रीति का निरूपण करते हैं। 'महावीरचरितम् १,१४॥
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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