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विषयानुक्रमणिका
पुष्पमाला आदि पदो की अदोषता १०३ | आरोह अवरोह के ओज प्रसाद रूप होने से समाधि गुण का
खण्डन
१२६
उष्ट्र-कलभ आदि पदो की अदोषता
यह अदोषता प्रयुक्त पदो मे ही मानी जाती है ।
३ सन्दिग्ध
४ अप्रयुक्त ५ अपक्रम
६ लोक विरुद्ध
७ विद्या विरुद्ध
१०४
१०५
१०६ |
१०७
१०७
१०८
११०
'गुण विवेचन' नामक तृतीय अधिकरण
[ पृष्ठ ११३ - १५९ तक ]
प्रथम अध्याय
[ गुणालङ्कार विवेक और शब्द गुण ]
११३-१३९
गुण तथा अलङ्कार का भेद
काव्य शोभा के जनक गुण काव्य शोभा के अतिशय हेतु
उपपादन
३ श्लेष गुण
४ समता गुण ५ समाधि गुण
११३
११३
अलङ्कार मम्मटाचार्य कृत गुण अलङ्कार भेद गुणो की नित्यता
दस प्रकार के शब्द गुण
१ ओज गुण
११४
११५
११८
११९
१२०
२. प्रसाद, गुण
शैथिल्य रूप प्रसीद के गुणत्व का
१२०
१२३
समाधि
युक्ति का निराकरण
माधुर्यं गुण
सौकुमार्य गुण
' के खण्डन मे प्रस्तुत
६
७
गुण
८ उदारता गुण
९ अर्थ व्यक्ति गुण
१० कान्ति गुण
११ शब्द गुणो के विषय मे
सग्रह श्लोक
गुणो की अभावरूपता का
निराकरण
गुणो की भ्रमरूपता का निराकरण
गुण के पाठधर्मत्व का निरा
करण
घ अर्थ का सक्षेप कथन
• ड अर्थ की साभिप्रायता
ग
२ अर्थ गुण प्रसाद
१२४३ अर्थ गुण श्लेप
१२४ | ४ अर्थ गुण समता
१२६
१३१
१३२
१३२
१३३
१३४
१३५
१३५
१३७
१३८
द्वितीय अध्याय
[ अर्थ गुण विवेचन १४० - १५९ ]
ओज आदि दश अर्थ गुण
१४०
१. अर्थ गुण ओज
१४१
अर्थ प्रौढि रूप ओज के पाँच भेद १४१
क पद के अर्थ मे वाक्य रचना १४१
ख वाक्य के अर्थ मे पद का
प्रयोग
ग अर्थ का विस्तार से कथन
१३९
१४६
१४४
१४५
१४५
१४६
१४७
१४८