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________________ गुणों तथा वृत्तियों का विवेचन मम्मट के आधार पर किया गया है। मिश्रजी ने भी केवल तोन ही गुणों की सत्ता स्वीकार की है-शेष का उन्हीं में अन्तर्भाव माना है । वृत्तियों का वर्णन वृत्यनुप्रास के अन्तर्गत हुआ हैइन्होंने भी प्रदीप के आधार पर माधुर्य का सम्बन्ध उपनागरिकता से, प्रोज का गौड़ी से, और कोमला का प्रसाद से माना है। हिन्दी काव्यशास्त्र की दूसरी प्रवृत्ति का सम्बन्ध है आधुनिक श्रालोचना-पद्धति से जिसका प्राधार पाश्चात्य काव्यशास्त्र तथा मनोविज्ञान है। स्वभावतः यह दूसरी प्रवृत्ति हो आज अधिक समर्थ है। इसके अन्तर्गत पं० महावीरप्रसाद द्विवेदी, प्राचार्य रामचन्द्र शुक्ल, डा. श्यामसुन्दरदास तथा श्री लक्ष्मीनारायण सुधांशु आदि का महत्वपूर्ण स्थान है। रोति अर्थात् काव्यभाषा-शैली के विषय में इन विद्वानों ने भी विचार व्यक्त किए हैं जिनका अपना विशेष मूल्य है। आधुनिक आलोचक पण्डित महावीरप्रसाद द्विवेदी के सामने काव्य-भाषा और गद्य-भाषा का प्रश्न एक नवीन रूप में उपस्थित हुआ। उस समय काव्य की भाषा ब्रजभाषा थी, और गय की भाषा खड़ी बोली। द्विवेदी जी ने बसवर्थ के सिद्धान्त के आधार पर ज्यावहारिक रूप से इस अंतर को मिटाने का प्रयत्न किया। "मतलब यह कि भाषा बोलचाल की हो क्योंकि कविता की भाषा से बोलचाल की भाषा जितनी ही अधिक दूर जा पड़ती है, उतनी ही उसकी सादगी कम हो जाती है। + + इसी तरह कवि को मुहावरे का भी ख्याल रखना चाहिए + + हिन्दी उर्दू में कुछ शब्द अन्य भाषाओं के भी आ गये हैं, वे यदि बोलचाल के हैं तो उनका प्रयोग सदोष नहीं माना जा सकता।" (रसज्ञ-रंजन पृ० ४६-४७) । कहने की प्रविश्यकता नहीं कि वई सवर्थ के प्रयत्न के समान ही यह प्रयत्न भी विफल ही रहा। इससे यह लाभ तो हुआ कि खड़ी बोली को काव्य-भाषा रूप में स्वीकृति मिल गई-किन्तु बोलचान की गध से अभिन्न भाषा काव्य-भाषा नहीं बन सकी । द्विवेदीजी की कविता तो गद्यमयी हो गई—किन्तु गद्य-भाषा काव्य की भाषा न बन सको। द्विवेदी जी ने उपयुक्त सिद्धान्त के अनुसार भाषा के गुणों की अपेक्षा उसकी शुद्धता आदि पर अधिक बल दिया है। (११)
SR No.010067
Book TitleKavyalankar Sutra Vrutti
Original Sutra AuthorVamanacharya
AuthorVishweshwar Siddhant Shiromani, Nagendra
PublisherAtmaram and Sons
Publication Year1954
Total Pages220
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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