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कदाचित् वे माधुर्य से पृथक सत्ता स्वीकार नहीं कर सके, अतएव उसे छोड़ कर उन्होंने एक अन्य प्रकार के पदरचना - चमत्कार को जिसका ब्रजभाषा में यथेष्ट प्रचार था, दशगुणों में समाविष्ट कर लिया। वामन ने शब्द गुण सौकुमार्य का अर्थ किया है शब्द-गत अपारुष्य — इस दृष्टि से पुनरुक्तिप्रकाश की रुचिर पदावृत्ति को सौकुमार्य का एक साधन भी माना जा सकता है । सौकुमार्य का यह रूप अन्य रूपों की अपेक्षा अधिक विशिष्ट था, अतएव दास ने कदाचित् इसका स्वतन्त्र अस्तित्व मानना प्रचलित काव्य-भाषा के अधिक स्वरुपानुकूल समझा ।
शेष नौ गुणों में से माधुर्य, श्रोज, प्रसाद, श्लेष, कान्ति, और अर्थ - व्यक्ति के लक्षण तो दास ने प्रायः दगडी अथवा वामन के अनुसार ही दिये हैं — परन्तु समता, श्रौदार्य और समाधि में परम्परा से चैचित्र्य है ।
समता - प्राचीनन की रोतिसों, भिन्न रीति ठहराइ | समता गुन ताको कहै, पै दूषनन्ह बराइ ॥
अर्थात् दास के अनुसार समता गुण वहां होता है जहां परिपाटी-भुक्त रीति का परित्याग कर नवीन रोति का अवलम्बन किया जाये - किन्तु परिपाटी से मुक्ति दुष्ट प्रयोगों की छूट नहीं देती । यह लक्षण कुछ-कुछ वामन के अर्थ - गुण माधुर्य से मिलता है । दण्डी और वामन के अनुसार समता का अर्थ है रोति का श्रवैषम्य 1
उदारता
जो अन्य बल पठित हवै, समुमि पर चतुरैन । रन को लागे कठिन, गन उदारता ऐन ॥
अर्थात् जहाँ अन्वय बल-पूर्वक लगाया जा सके जो केवल विदग्ध जन की ही समझ में आये और दूसरों को कठिन प्रतीत हो वहाँ उदारता गुण होता है । प्रस्तुत लक्षण दास ने कहां से लिया है यह कहना कठिन है । भरत, दण्डी, तथा वामनादि किसी ने भी इसका संकेत नहीं किया ।
तीसरा गुण समाधि है जिसमें दास ने कुछ वैचित्र्य प्रदर्शित किया है। जहां रुचिर क्रम से आरोह-अवरोह हो वहां समाधि गुण होता है : जुलै रोह-अवरोह गति रुचिर भाँति क्रम पाय ।
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