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ही है । इस प्रकार भारतोय तथा यूनानी-रोमी रीतिशास्त्रों में शैलियों के वर्गीकरण का आधार ही नहीं वरन् उनके तत्वों का विश्लेषण भी बहुत कुछ समान है।
डिमैट्रियस
अरस्तू सिसरो तथा डायोनीसियस की रीति- परम्परा को डिमैट्रियस तथा क्विन्टीलियन ने और आगे बढाया । डिमैट्रियस ने शैली पर एक स्वतन्त्र रीति-ग्रन्थ ही लिखा है । उन्होंने शैली की कोई औपचारिक परिभाषा नहीं की। अपने पूर्ववर्ती आचार्यों की भाँति वे भी शैली को लेखक के व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति और व्यक्ति-तत्व को शैली की आत्मा मानते हैं, परन्तु इसके साथ ही वे कुछ ऐसे निर्देशक सिद्धान्तों तथा नियमों का अस्तित्व भी स्वीकार करते हैं जो कलात्मक रचना (रीति) में सहायक होते हैं । इसी प्रकार वे यह भी स्वीकार करते हैं कि वस्तु-विषय शैली का प्रमुख नियामक तत्व है - किन्तु साथ ही उसको प्रस्तुत करने के ढंग पर भी बहुत कुछ निर्भर करता है।
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डिमैट्रियस ने शैली के चार प्रकार माने हैं :
उदात्त', १, मधुर या मसृण े, प्रसादमय और श्रोजस्वी ४ । इनमें पहले तीन तो सिसरो तथा डायोनांमियस द्वारा प्रतिपादित शैली-भेद ही हैं—-शोजस्वी इन्होंने अपनी ओर से और जोड़ दिया है । परन्तु वह भी इनकी अपनी उद्भावना नहीं है - इनसे पूर्व फिलोडेमस उपर्युक्त तीन भेदों के अतिरिक्त एक चौथे भेद ' प्रबल' का उल्लेख कर चुके थे ।
डेमैट्रियस के अनुसार उदात्त शैली का मूल तत्व है सामान्यता क्यों कि उनका मत है कि 'प्रत्येक सामान्य वस्तु प्रभावहीन होती है । उदात्त शैली के तत्व इस प्रकार हैं विशिष्ट तथा विचित्र शब्दावली, समास, अलंकार, काव्य - रूढ भाषा का बहुधा प्रयोग । उसकी पदावली उल्बण होती है, मसृण और कोमल के लिए उसमें अधिक अवकाश नहीं होता ।
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३ प्लेन
१ ऐलीवेटेड २ एलीगेन्ट (माक्सन ने इसे पालिश्ड कहा है ।) ४ फोर्सीवल ५ वैमैंट
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