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है तो उसकी पृथक सत्ता क्यों मानी जाये ? पण्डितराज ने इन दोनों का खंडन करते हुए मम्मट के दृष्टिकोण को प्रांशिक रूप में स्वीकार किया। मम्मट ने गुण और चित्तवृत्ति को एक नहीं माना-उन्होंने गुण को कारण और चित्तवृत्ति को कार्य माना है । जगन्नाथ इनमें प्रयोजक-प्रयोज्य सम्बन्ध मानते हैं : गुण प्रयोजक है और चित्तवृत्ति प्रयोज्य-अयोजक और प्रयोज्य सम्बन्ध से दोनों को एक भी माना जा सकता है : प्रयोजकता सम्बन्धेन द्र त्यादिक्रम एवं वा माधुर्यादिकमस्तु । रसगंगाधर पृ०१५। यह विवेचन भी निर्धान्त नहीं है। एक ओर तो पण्डितराज गुण को वस्तु रूप में ही रस और शब्दार्थ दोनों का धर्म मानते हैं और दूसरी और प्रयोजक-प्रयोज्य सम्बन्ध से उसे चित्तवृत्ति रूप भी मानते हैं। रसधर्म होने के नाते तो गुण चित्तवृत्ति रूप अवश्य हो सकता है । परन्तु शब्दार्थ का धर्म होने के नाते यह सम्भव नहीं है क्योंकि द्रुति आदि चित्तवृत्तियों को बाहादरूप रस मे तो स्थिति सम्भव है, परन्तु शब्द और अर्थ में उनकी अवस्थिति कैसे मानी जा सकती है।
वास्तव में संस्कृत साहित्य-शास्त्र में गुण की स्थिति पूर्णतया स्पष्ट नहीं है। काव्य में उसको पृथक सत्ता स्वीकार करने में भी यत्किंचित सदेह अंत तक बना रहता है। फिर भी उसकी सत्ता निरपवाद रूप से मानी ही गई है और उसका एक साथ निषेध करना अधिक संगत न होगा।
मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो रस और गुण दोनों ही मनःस्थितियां हैं (इस विषय में अभिनव, मम्मट आदि सभी सहमत हैं)। रस वह श्रानन्द रूपी मनःस्थिति है, जिसमें हमारी सभी वृत्तियां अन्वित हो जाती है और यह स्थिति अखण्ड है। उधर गुण भी मनःस्थिति है, जिसमें कहीं चित्त-वृत्तियां द्रवित हो जाती हैं, कहीं दीप्त और कहीं परिव्यास । यहां तक तो कोई कठिनाई नहीं है। यह भी ठीक है कि विशेष भावों में और विशेष शब्दों में भी चित्तवृत्तियों को द्रवित अथवा दीप्त करने की शक्ति होती है। उदाहरण के लिए मधुर वर्गों को सुनकर और प्रेम, करुणा श्रादि भावों को ग्रहण कर हमारे चित्त में एक प्रकार का विकार पैदा हो जाता है, जिसे तरलता के कारण द्रति कहते हैं । और महाप्राण वर्षों को सुनकर एवं वीर और रौद्र श्रादि भावों को ग्रहण कर हमारे चित्त में दूसरे प्रकार का विकार हो जाता है जिसे विस्तार के कारण दीप्ति कहते हैं । परन्तु इन विकारों को पूर्णतः श्राहाद रूप नहीं कह सकते। यहां काव्य (वस्तु) भावकत्व की स्थिति को पार करके भोजकत्व की ओर बढ़