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काव्यशोभाकरान धर्मानलंकारान् प्रचक्षते । ते चाद्यापि विकल्प्यन्ते, कस्तान कात्स्येन वक्ष्यति ॥२,१॥ काश्चिन्मार्गविभागार्थमुक्ताः प्रागप्यलंक्रियाः साधारणमलंकारजातमन्यत् प्रदर्श्यते ॥२,३॥
(काच्यादर्श) काव्य के शोमाकारक धर्म अलंकार कहलाते हैं उनकी कल्पना अब भी बराबर हो रही है । उनका समग्र रूप में वर्णन कौन कर सकता है ?
(इससे) पूर्व भी मार्गों का विभाग करने के लिए कुछ अलकारों का वर्णन किया जा चुका है। (अब) साधारण अलंकारों का वर्णन किया जाता
उपर्युक्त रलोकों का विश्लेषण इस प्रकार किया जा सकता है :
कान्य के शोभा-विधायक सभी धर्म अलंकार कहलाते हैं उनकी संख्या नित्य वर्धमान है-चे असंख्य हो सकते हैं।
उपमा रूपक आदि प्रसिद्ध अलंकारों को दण्डी ने साधारण अलंकार' कहा है।
इन साधारण अलंकारों के अतिरिक्त अन्य सभी सौन्दर्य-विधायक तत्व भी अलंकार ही हैं।
मार्ग-विभाजन के आधारभूत दश गुण भी अलंक्रिया अथवा अलंकार ही हैं।
अतएव (१) दण्डी के अनुसार गुण भी एक प्रकार के अलंकारअर्थात् काव्य-शोभा-विधायक धर्म हैं : शोभाकरत्वं हि अलंकारलक्षणं, तल्लक्षणयोगात् तेऽपि (श्लेषादयो दशगुणा अपि) अलंकाराः (तरुणवाचस्पति)।
(२) ये काव्य के स्वतंत्र अग हैं-रस के आश्रित नहीं है, अर्थात् इनके द्वारा काव्य का सीधा उपकार होता है रस के श्राश्रय से नहीं। दण्डी १ दण्डी के टीकाकारों ने इनका अर्थ अनुप्रास आदि शब्दालकार किया है परन्तु
डा० लाहरी इनसे गुणों का आशय ग्रहण करते हैं । हमको डा० लाहरी का ही मत अधिक समीचीन प्रतीत होता है।
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