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काव्यालङ्कारसूत्रवृत्तौ
[ सूत्र ३९-४०-४१
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गुणविस्तरादयश्चिन्त्या. । ५, ३, ३६ । गुणविस्तरः, व्याक्षेपविस्तरः इत्यादयः प्रयोगाश्चिन्त्याः । " प्रथने वावशब्दे' इति घन् प्रसङ्गात् ॥ ३२ ॥ अवतरापचायशब्दयोर्दीर्घ ह्रस्वत्वव्यत्यासो बालानाम् । ५, २,४० । अवतरशब्दस्यापचायशब्दस्य च दीर्घहस्वत्वव्यत्यासो बालानां बालिशानां प्रयोगेष्विति । ते ह्यवतरणमवतार इति प्रयुञ्जते । मारुतावतार इति । स ह्ययुक्तः । भावे तरतेरविधानात् । अपचायमपचय इति प्रयुञ्जते पुष्पापचय इति । अत्र "हस्तादाने चेरस्तेये' इति घन् प्राप्त इति ॥ ४० ॥ शोभेति निपातनात् । ५, २, ४१ ।
शोभेत्ययं शब्दः साधुः । निपातनान् । 'शुभ शुम्भ शोभार्थी' इति ।
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गुणविस्तर श्रादि [ प्रयोग ] चिन्त्य [ अशुद्ध ] है ।
'गुण विस्तरः' 'व्यक्षेप विस्तरः' इत्यादि प्रयोग चिन्त्य [साधु ] है । 'प्रथने बाव शब्द' इस सूत्र से [ वि पूर्वक स्तृ धातु से ] घञ् का विधान होने से [ 'गुणविस्तारः' प्रयोग होना चाहिए । 'गुणविस्तर . ' नही ] ॥ ३९ ॥ 'अवतर' और 'अपचाय' शब्दो मे दीर्घ हस्व का परिवर्तन मूर्खो का [ प्रयोग ] है ।
'अवतर' शब्द और 'अपचाय' शब्द के दीर्घ ह्रस्व का उलट-पुलट बालको अर्थात् मूर्खो [ बालिशो ] के प्रयोगो मे हो जाता है । वे [ मूर्ख पुरुष ] अवतरण को 'अवतार' इस रूप सें प्रयुक्त करते हैं । जैसे 'मारुतावतार' । वह [ अवतार रूप प्रयोग ] प्रयुक्त है । भाव में तृ धातु से [ 'ऋदोरप्' इस सूत्र से ] अप् [ प्रत्यय ] का विधान होने से । 'अपचाय' के स्थान पर 'अपचय' यह प्रयोग करते है । जैसे 'पुष्पापचय' । यहा 'हस्तादाने चेरस्तेये' इस सूत्र से घञ, प्राप्त है । [ अतः यहां 'पुष्पापचायः ' यह प्रयोग होना चाहिए । 'अवतरः' की जगह 'अवतार' और 'अपचाय:' की जगह 'श्रपचयः' प्रयोग में दीर्घ ह्रस्व की गड़बड़ बालिशता की सूचक है ] ॥ ४० ॥
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शोभा यह [ शब्द ] निपातन से [ बनता ] है ।
शोभा यह शब्द [ भी ] शुद्ध है । निपातन से । 'शुभ शुम्भ शोभायौँ”
' श्रष्टाध्यायी ३, ३, ३३ । • भ्रष्टाध्यायी ३, ३५७ ।
२ अष्टाध्यायी ३,३,४०