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१५०] काव्यालङ्कारसूत्रवृत्ती
[ सूत्र ७-८ अर्थदृष्टिः समाधि. । ३, २, ७ । अर्थस्य दर्शनं दृष्टिः । समाधिकारणत्वात् समाधिः । अवहितं हि चित्तमर्थान् पश्यतीत्युक्तं पुरस्तात् ॥ ७ ॥
अर्थो द्विविधोऽयोनिरन्यच्छायायोनिर्वा । ३, २, ८ ।
यस्यार्थस्य दर्शनं समाधिः सोऽर्थो द्विविधः । अयोनिरन्यच्छायायोनिर्वेति । अयोनिरकारणः । अवधानमात्रकारण इत्यर्थः । अन्यस्य काव्यस्य छायाऽन्यच्छाया तद्योनिर्वा । तद्यथा
सुगमता से समझ में प्राजाने के कारण 'समता' गुण का सुन्दर उदाहरण है।
समझ में साफ आ जावे फसाहत इसको कहते है ।
प्रगर हो सुनने वालो पर बलागत इसको कहते है ॥ ६ ॥ पञ्चम अर्थगुण समाधि' का निरूपण अगले सूत्र में करते हैअर्थ [ विषयक ] दृष्टि [ विशेष ] 'समाधि' [ अर्थगुण ] है।
अर्थ का दर्शन दृष्टि [ शब्द से अभिप्रेत ] है [ उसके ] समाधिमूलक [समाधिःकारणं यस्य अर्थात् समाधि अथवा प्रवधान जिसका कारण है । इस प्रकार का बहुव्रीहि समास ] होने से [ कार्य कारण का प्रभेद मान कर समाधि अथवा अवधानमूलक अर्थदृष्टि को ] 'समाधि' [कह दिया है। एकाग्र [ समाहित अवहित ] चित्त ही अर्थों को [ भली प्रकार ] देख सकता है [ इसलिए अर्थदृष्टि प्रवधान अथवा समाधिमूलफ है इससे कार्य-कारण का अभेद मान कर उसी को 'समाधि' कह दिया है ] यह बात पहले कह चुके है ॥७॥
[जिस अर्थ का दर्शन 'समाधि' कहलाता है वह ] अर्थ "अयोनि' अथवा 'अन्यच्छायायोनि' [ भेद से ] दो प्रकार का होता है। ।।
जिस अर्थ का वर्शन [ ज्ञान ] 'समाधि' [ नामक अर्थगुण कहा जाता] है वह अर्थ दो प्रकार का होता है। [एक ] अयोनि और [ दूसरा ] 'अन्यच्छावायोनि' । 'अयोनि' अर्थात् अकारण अर्थात् अवधानमात्रनिमित्तक - [अर्थात् कवि किसी दूसरे कवि के वर्णन से स्फूति पा कर नहीं, अपितु स्वय जिस अर्थ का वर्णन करता है वह 'अयोनि' कहलाता है । इसके विपरीत ] दूसरे [कवि ] के काव्य की छाया अन्यच्छाया [ पद से अभिप्रेत है। वह [ दूसरे के काव्य को छाया ] जिस का योनि [ कारण है वह 'अन्यच्छायायोनि' [ दूसरा भेद ] है ।