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________________ नेहरू और उनकी 'कहानी' और स्वरूप साफ नहीं विकृत होता है। उसपर वह कर्म-तत्पर सी हैं । विभेद उनके राजनीतिक कर्मकी शिला है। वे जन्मसे ब्राह्मण, वर्गसे क्षत्रिय हैं, पर मन उनका अत्यन्त मानवीय है। सूर्योदयकी वेलाके प्रभातमें भी उन्हें प्रीति है। पशु-पक्षियोंमें, वनस्पतियोमें, प्रकृतिमें, तारोंसे चमक जानेवाली अँधेरी-उजली रातोंमें, भविष्यमें, इस अज्ञेय और अजेय शक्तिमें, जो है और नहीं भी है,—इन सबमें भी जवाहरलालजीका मन प्रीति और रस लेता है । उस मनमें कट्टरता हो, पर जिज्ञासा भी गहरी भरी है। वही जिज्ञासासे भीना स्नेहका रस जब तनिक तनिक अविश्वस्त उनकी मुस्कराहटमें घटता है, तब कट्टरता भी अमृतमे नहा जाती है । वह नेता है और चाहे पार्टी राजनीतिक भी हो, पर यह सब तो बाहरी और ऊपरी बातें है। जवाहरलालजीका असली मूल्य तो इसमें है कि वह तत्पर और जाग्रत् व्यक्ति है। उस निर्मम तत्परता और जिज्ञासु जागृतिकी छाप पुस्तकमें है और इसीसे पुस्तक सुन्दर और स्थायी साहित्यकी गणनामें रह जायगी । १२१
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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