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________________ कला क्या है ? कुछ बातें मुझे जल्दी में कहनी हैं। क्योंकि, जब मुझे अवकाश और स्थिरता हो, तब मै इन बातोंको नहीं कहूँगा । उस समय तो चुप रहना मुझे अधिक प्रिय होता है । या, उस समय कुछ लिखूँ ही या करूँ ही, तो वह लिखना या करना अच्छा लगता है जो बृहत्-फल न हो और साधारण प्रतीत होता हो । तब कविता लिखूँगा, कहानी लिखूँगा, या इसी जोड़का कुछ निष्प्रयोजन काम करूँगा । किन्तु, अब अवकाशकी कमीमें मैं कुछ उन बातोंपर लिखकर छुट्टी चाहूँगा जिनपर झगड़ा होता है और जिन्हें लोग कामकी और ज़रूरी समझा करते है । दुनियामें एक तमाशा देखने में आता है - जो जीवनमे कलामय नहीं है उसे चिन्ता है कि समझे कि कला क्या है । दुनियाको ऐसी चिन्ता आजकल बहुत खा रही है। -~-~~-सत्य के साथ एकाकार होकर रहनेकी जिनके जीवनमे चेष्टा नहीं है वे सत्यके सम्बन्धमें विवाद उठाने में काफी कोलाहलपूर्ण है । - धर्मको लेकर धार्मिक लोग सेवा - कर्ममें और भगवत् - प्रार्थनामे जब लीन है तब और लोग हैं जिनकी धर्मके सम्बन्धमें श्राकुलता जगतमें उद्घोषित होती रहती है और जो धर्मको लेकर शास्त्रार्थ और यदा-कदा मानव - मस्तकोंकी तोड़-फोड़ किया करते है । सामाजिक क्या, राजनीतिक क्या और साहित्यिक क्या, हर क्षेत्र में जब यह विचित्रता दीखती है तब बड़ा अनोखा भी मालूम होता २२
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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