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________________ है, वह विधेय है; जो नहीं करती, वह निपिद्ध है। सुंदरके नामपर अथवा शिवके नामपर जो प्रवृत्ति प्रेम-विमुख वर्तन करेगी वह मिथ्या होगी। दूसरे शब्दोभे वह अशिव होगी, असुंदर होगी,-चाहे तात्कालिक 'शिव'-वादी और सुंदरं 'वादी कितना भी इससे इनकार करे। . असलमें मानवकी मूल वृत्तियाँ मुख्यतः दो दिशाओंमे चलती हैएक वर्तमानके हृदयकी ओर, दूसरी भविष्यके आवाहनकी ओर । एक . रोहक, दूसरी पारलौकिक । एकमें आनंदकी चाह है, दूसरीमें मंगलकी खोज है । एकका काम्य देव सुंदर है, दूसरीका आराध्य देव शिव है। ___ यम-नियम, नीति-धर्म, योग-शोध, तपस्या-साधना, इनके मूलमें शिवकी खोज है। इनकी आँख भविष्यपर है। साहित्य-संगीत, मनीपा-मेधा, कला-क्रीड़ा,-इनमें सुंदरके दर्शनकी प्यास है । इनमे वर्तमानको थाह तक पा लेनेकी स्पर्धा है। आरंभसे दोनों प्रवृत्तियोमें किंचित् विरोध-भाव दीखता आया है। शिक्के ध्यानमें तात्कालिक सौन्दर्यको हेय समझा गया है। यही क्यों, उसे वाधा समझा गया है। उधर प्रत्यक्ष कमनीयको हाथसे छोड़कर मंगल-साधनाकी वहकमें पड़ना निरी मूर्खता और विडंबना समझी गई है। तपस्याने क्रीडाको गर्हित वताया है और उसी दृढ़ निश्चयके साथ लीलाने तपस्याको मनहूस करार दिया है। दोनों एक दूसरीको चुनौती देती और जीतती-हारती रही हैं। __यह तो स्पष्ट ही है कि शिव और सुंदरमें सत्यकी अपेक्षा कोई विरोध नहीं है । दोनो सत्यके दो पहल है । दोनों एक दूसरे के पूरक . हैं। पर अपने अपने-यापमे सिमटते ही दोनोमे अनबन हो रहती २५०
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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