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जुदा जुदा हैं, आत्मा एक है। आत्मैक्यको कल्पनाद्वारा प्राप्य और भावनाद्वारा सुलभ बनाना होगा । और अपनी एवं सबकी देहकी अभिन्नताके प्रति सम्मान और संभ्रमका भाव रखना होगा। सबके स्वत्वका आदर करना होगा, किसी स्वत्वका आहरण एवं अपहरण गर्हित समझना होगा। यही दूर और पासका भेद है । इस दूर और पासकी तर-तमताका भेद हमने खोया तो समझो अपनेको ही खोया। उसको जानकर हम अपनेको पानेका प्रयत्न करें, यही शुम है।
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