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________________ उपयोगिता पड़ते ? क्योकि वे धरतीपर पैरोके बल खड़े थोड़े ही हो सकते हैं, वे तो मानों धरतीसे नीचेकी और अधर लटके हुए हैं । उस समय हम अपनेको बड़ा भाग्यशाली मानते थे कि हम भारत-भूमिमे पैदा हुए, अमरीकामे पैदा नही हुए, नहीं तो उल्टे लटके रहना पड़ता ! आज भी जाने-अनजाने हममेसे बहुतोंका वही हाल है। जिन धारणाओंको पकड़ कर हम खड़े है, हमे जान पड़ता है कि सच्ची सचाई वहीं है, शेष सबके हाथों बस झूठ ही झूठ आकर रह गया है । पर जैसे कि ऊपर उदाहरणमें ऊँच-नीचकी हमारी भ्रान्त कल्पना ही हमारी परेशानीका कारण थी वैसे ही अन्य हमारी अहंकृत कल्पनाएँ हमारे वैर-विरोधका कारण होती है । स ऊपरके चित्रमें ३ को पृथ्वीका केंद्र मानिए। अ, ब, स और द उस पृथिवीपर चार अलग बिन्दुओपर खड़े हुए चार व्यक्ति है । क्या वे अपनी अपनी जगहपर किसी तरह भी ऊँचे-नीचे या कमअधिक है ? असलमें उनका अपनी ऊँच-नीचकी धारणाके हिसाबसे १८५
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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