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________________ जरूरी भेदाभेद रहनेका एवज देनेके लिए काफी पैसा नहीं है, तो इसका दोष किस भॉति मुझमे है, यह मै जानना चाहता हूँ। __मै जानना चाहता हूँ कि समाज जब कि मेरी तारीफ भी करता है, तो जीवन और जीवनके जरूरी उपादानोसे मैं वञ्चित किस प्रकार रक्खा जा रहा हूँ ! मैं जानना चाहता हूँ कि अगर मकानका किराया होना जरूरी है, तो यह भी जरूरी क्यों नहीं है कि वह रुपया मेरे पास प्रस्तुत रहे? वह रुपया कहाँसे चलकर मेरे पास आवे, और वह क्यों नहीं आता है ! और, यदि वह नहीं आता है, तो क्यो यह मेरे लिए चिन्ताका विषय बना दिया जाना चाहिए और किस नैतिक आधारपर यह मुंशीजी सरकारसे फरियाद कर सकते है कि मै अभियोगी ठहराया जाऊँ और सरकारी जज बिना मनोवेदनाके कैसे मुझे अभियुक्त ठहराकर मेरे खिलाफ डिग्री दे सकता है ! और समाज भी क्यो मुझे दोषी समझनेको उद्यत है ! क्या इन रुपयोंके बिना महेश्वरजीका कोई काम अटका है ! इन किरायेके रुपयोपर उनका हक़ बनने और कायम रहनेमे कैसे आया? रुपया उपयोगितामें जाना चाहिए कि विलासितामे ! वह समाज और सरकार क्या है जो रुपयेके बहावको विलाससे मोड़कर उपयोगकी ओर नहीं ढालती ? ___ क्या कभी मैने महेश्वरजीसे कहा कि वह मुझे मात्र रहने दें? क्यों वह मुझसे किराया लेते है!-न लें। ___ नहीं कहा तो क्यों नहीं कहा ? क्या यह कहना जरूरी नहीं है !....लेकिन, क्या यह कहना ठीक है ? १६९
SR No.010066
Book TitleJainendra ke Vichar
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabhakar Machve
PublisherHindi Granthratna Karyalaya
Publication Year1937
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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