________________ जैनतत्त्वादर्श यह उक्त दोनों मन्त्रों का अर्थ एक आर्यसमाजी विद्वान् का किया हुआ है। इस पर अधिक टीका टिप्पणी की आवश्यकता नहीं है / पाठक स्वयं विचार लें कि इन दोनों मन्त्रों में ग्यारह पुरुष तक के साथ व्यभिचार करने और सन्तानोत्पत्ति में असमर्थ होने पर पुरुष अपनी बी को अन्य पुरुष के साथ समागम करने का आदेश दे, यह कहां से आया ? बस इसी प्रकार की स्वामीजी की अन्य वेदमन्त्रों की व्याख्या है। अन्त में भाई बहन के संवाद को पति पत्नी के रूप में ग्रहण करनेवाले स्वामीजी के विषय में आचार्य श्री . हेमचंद्र की उक्ति में हम इतना ही कहेंगे कितुरंगशृंगाण्युपपादयस्यो , नमः परेभ्यो नवपंडितेभ्यः। **