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दशम परिच्छेद
રૂ૪૨ प्रतिष्ठा शीघ्र करनी चाहिये । पोडशक ग्रन्थ में लिखा है कि, मन्दिर तयार हुए पीछे दश दिन के अभ्यंतर ही प्रतिष्ठा करानी चाहिये । प्रतिष्ठा की विधि प्रतिष्ठाकल्प प्रमुख ग्रन्थों से जान लेनी। आठमा दीक्षा द्वार-सो बड़े महोत्सव से पुत्र, पुत्री,
___ भाई, भतीजा, स्वजन, मित्र, परिजन प्रमुख दीक्षा को दीक्षा दिलावे। उपस्थापना करावे, तथा
दीक्षा लेनेवालों का महोत्सव करे। यह महापुण्य का कारण है। जिस के कुल में चारित्रधारक पुरुष होवे, सो बड़ा पुण्यवान् कुल है। लौकिक शास में भी लिखा है कि
तावद् भ्रमति संसारे, पितरः पिण्डकांक्षिणः | यावत्कुले विशुद्धात्मा, यतिः पुत्रो न जायते ॥
नवमा तत्पदस्थापना द्वार-सो गणि, वाचनाचार्य, वाचक, आचार्यादि पदप्रतिष्ठा को शासन की उन्नति के वास्ते बडे महोत्सव से करे। जैसे पहिले गणधरों की शक-इन्द्र ने करी है, तथा मन्त्री वस्तुपाल ने इक्कीस आचार्यों की पदस्थापना करी। दशमा पुस्तक लिखावने का द्वार-सो पुस्तक नो आचा
रांगादि कल्पसूत्र अरु जिनचरित्रादि को पुस्तकलेखन न्यायार्जित धन से लिखावे। अच्छे पत्र
कागज ऊपर बहुत शुद्ध सुंदर अक्षरों से