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जनतत्वादरा
मण्डप में सवा लाख सोनैया लगाया, अरु प्रेक्षामंडप में इक्कीस लाख सोनैया खरच करा । तथा कुमारपाल राजा ने चौदह सौ चौतालीस (१४४४) नवीन जिनमन्दिर कराये, अरु सोलां सौ मन्दिरों का जीर्णोद्धार कराया । छ्यानवे क्रोड़ रुपये खरच के त्रिभुवनविहार नामा जिनमंदिर बनवाया । इस में एक सौ पच्चीस अंगुल प्रमाण अरिष्टरत्नमयी प्रतिमा स्थापित की, और बहत्तर देहरियों में चौवीस प्रतिमा रत्न की, चौवीस सोने की, चौवीस रूपे की स्थापन करीं । अरु चौदह भार प्रमाण एक एक चौवीसी बनवाई । तथा मंत्री वस्तुपाल ने तेरां सौ तेरां नवीन जिनमंदिर बनवाये | और बाईस सौ जीर्णोद्धार कराये । सवा लाख प्रतिमा, अरु सवा लाख रत्नसुवर्ण से जड़े हुए आभूषण, प्रतिमाजी के बनवाये । तथा शाह पेथड़ने चौरासी चौरासी जिनमन्दिर बनवाये । मांधाता अरु ॐकार नगर में तथा देवगिरि में क्रोड़ों रूपक खरच के वीरमदे राजा के राज्य में चौरासी निमन्दिर बनवाये । तीन लाख रुपैया दान में दीया । तथा तिस ही पेथडशाह ने श्रीशत्रुंजय तीर्थ में श्रीऋषभदेवजी के मन्दिर को सुवर्णपत्र से मढ़ा के मेरु के श्रृंगवत् कर दिया था । ये सर्व पूर्वोक्त मन्दिर राजा अजयपाल अरु मुसलमानों ने गारत कर दिये, शेष जो बचे बचाये रहे हैं, वे आज भी आबु तारंगादि पर्वतों पर विद्यमान हैं ।
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सातमा प्रतिमा की प्रतिष्ठा का द्वार - सो प्रतिमा की