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दशम परिच्छेद ३३७ करे, ईशानकोण में देवगृह करे, तथा दक्षिण पासे अग्नि, पानी, गाय, वायु-और दीवे की भूमि बनावे । तथा वामे पासे भोजन, धान्य, द्रव्य, वाहन, देवता की भूमि करे, यह पूर्वादि दिशा घर के दरवाजे की अपेक्षा से जाननी, छींकवत्, न तु सूर्यापेक्षा।
तथा घर बनानेवाले सूत्रधार, मजूर प्रमुख को बोले प्रमाण से कछुक अधिक मजूरी देवे, इसमें शोमा है। गृहस्थ को चाहिये, ऐसा घर वनावे, परन्तु व्यर्थ बड़ा घर न बनावे । क्योंकि उसमें व्यर्थ धन खरचना है। घर का द्वार, मर्यादा से योग्य जान के रक्खे। क्योंकि बहुत दरवाजे बनाने से दुष्ट जनों के आने जाने से स्त्री अरु धन का नाश हो जाता है । तथा दरवाजे का किवाड़ दृढ बनावे, सांकल अर्गलादि से सुरक्षित करे, किवाड़ भी सुख से खुल जावे, ऐसे बनावे । मीत में भोगल रखने से पंचेन्द्रिय जीव की विराधना होती है। किवाड़ मेड़े, तब यत्न से भेड़े। ऐसे प्रणाला, खालादि का भी यथाशक्ति से उद्यम करे। इसी तरे देश, काल, स्वविभव उचित, स्वजाति उचित घर बना के विधि सहित स्नानपूजा, साधर्मिवात्सल्य, संघपूजा करके भले मुहूर्त में भले शकुन में प्रवेश करे, तो बहुत सुखदायी होवे, त्रिवर्ग की सिद्धि का हेतु होवे।
दूसरा विद्या द्वार कहते हैं। विद्या-सो लिखित, पठित,