SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 362
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दशम परिच्छेद ३३५ घर लेती वक्त किसी को दुःख न देवे। ऐसे ही ईंट, काष्ठ, पाषाण प्रमुख वस्तु निर्दोष, दृढ़, बलवान् , अरु जो नवीन होवे, सो योग्य मोल दे कर लेवे । सो विक्रय होती होवे, तिस का योग्य मोल दे कर लेवे । परन्तु आप इंटपचावा न लगावे । तथा जिनप्रासादादि की ईटादि न ग्रहण करे, क्योंकि शास्त्र में भी कहा है कि, देहरा, कूवां, वावडी, मसाण, मठ, अरु राजा के मंदिर, इनके पाषाण, ईंट, काष्ठ को सरसों मात्र भी वर्ने । क्योंकि इनका पाषाण, स्तंभ, पीढ़, पट्टा, द्वार, शाखा, ये सर्व गृहस्थ के घर में विरोधकारी हैं, अरु धर्म के स्थान में सुखदायी हैं। ___ तथा पाषाणमय घर में काष्ठ के स्थंभ, अरु काष्ठमय घर में पाषाण के स्तंभ, मंदिर में तथा घर में बनाना वर्ने । तथा हल का काष्ठ, कोल्हू का काष्ठ, गाड़े का काष्ठ, अरहट का काष्ठ, चरखे का काष्ठ, कांटेवाले वृक्ष का काष्ठ, पंचउंबर का काष्ठ, थोहर का काठ, ये काष्ठ घर में ना लगावे । तथा बिजोरा, केला, दाडिम, वेरी, जंबीरी, हलदर, आंवली, कीकर अरु धतूग, इतने का काष्ठ वर्जे। तथा इन वृक्षों की जड पडोस से घर में प्रवेश करे, अथवा इनकी छाया घर में पडे, तो कुल का नाश करे। तथा पूर्वदिशा की तरफ घर ऊंचा होवे, तो धन का नाश करे। तथा दक्षिण दिशा की तरफ ऊंचा होवे, तो धन की वृद्धि करे । पश्चिमदिशा में ऊंचा होवे, तो धनादि की वृद्धि करे। उत्तरदिशा में होवे, तो उजड़ जावे ।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy