SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 319
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २९२ जैनतत्त्वादर्श I भाई, तपस्वी, वृद्ध, बाल, स्त्री, वैद्य, पुत्री, गोत्री, पामर, बहिन, बहिनोई, मित्र, इन सर्व के साथ वचन की लड़ाई न करे । सदा सूर्य को न देखे । तथा चन्द्र सूर्य के ग्रहण को न देखे । ऊंडे - गहरे कुर्वे को झूक के न देखे । संध्या समय आकाश न देखे । तथा मैथुन करते को, शिकार मारते को, नंगी स्त्री को, यौवनवती स्त्री को, पशुक्रीड़ा को और कन्या की योनि को न देखे । तथा तेल में, जल में, शस्त्र में, मूत में, रुघिर में, इतनी वस्तुओं में अपना मुख न देखे, क्योंकि इस काम से आयु टूट जाती हैं । तथा अंगीकार करे को त्यागे नहीं । नष्ट हो गई वस्तु का शोक न करे, किसी की निद्रा का छेद न करे। बहुतों से वैर न करे, जो बहुतों को सम्मत होवे, सो बोले। जिस काम में रस न होवे, सो न करे । कदापि करना पड़े, तो भी बहुतों से मिल के करे । तथा धर्म, पुण्य, दया, दानादि शुभ काम में बुद्धिमान् मुख्य होवे - अग्रेश्वरी बने । तथा किसी के चूरे करने में जलदी अग्रेश्वरी न बने । तथा सुपात्र साधु में कदापि मत्सर ईर्ष्या न करे । तथा अपने जातिवाले के कष्ट की उपेक्षा न करे । किन्तु मिल कर आदर से उसका कष्ट दूर करे । तथा माननीय का मान मंग न करे तथा दरिद्रपीडित, मित्र, साधर्मिक, न्याति में बुद्धिवाला होवे, तथा गुणों करके बड़ा होवे, बहिन संतान रहित होवे, इन सर्व की पालना करे। अपने कुल में जो काम करने
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy