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जैनतत्त्वादर्श
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भाई, तपस्वी, वृद्ध, बाल, स्त्री, वैद्य, पुत्री, गोत्री, पामर, बहिन, बहिनोई, मित्र, इन सर्व के साथ वचन की लड़ाई न करे । सदा सूर्य को न देखे । तथा चन्द्र सूर्य के ग्रहण को न देखे । ऊंडे - गहरे कुर्वे को झूक के न देखे । संध्या समय आकाश न देखे । तथा मैथुन करते को, शिकार मारते को, नंगी स्त्री को, यौवनवती स्त्री को, पशुक्रीड़ा को और कन्या की योनि को न देखे । तथा तेल में, जल में, शस्त्र में, मूत में, रुघिर में, इतनी वस्तुओं में अपना मुख न देखे, क्योंकि इस काम से आयु टूट जाती हैं । तथा अंगीकार करे को त्यागे नहीं । नष्ट हो गई वस्तु का शोक न करे, किसी की निद्रा का छेद न करे। बहुतों से वैर न करे, जो बहुतों को सम्मत होवे, सो बोले। जिस काम में रस न होवे, सो न करे । कदापि करना पड़े, तो भी बहुतों से मिल के करे । तथा धर्म, पुण्य, दया, दानादि शुभ काम में बुद्धिमान् मुख्य होवे - अग्रेश्वरी बने । तथा किसी के चूरे करने में जलदी अग्रेश्वरी न बने । तथा सुपात्र साधु में कदापि मत्सर ईर्ष्या न करे । तथा अपने जातिवाले के कष्ट की उपेक्षा न करे । किन्तु मिल कर आदर से उसका कष्ट दूर करे । तथा माननीय का मान मंग न करे तथा दरिद्रपीडित, मित्र, साधर्मिक, न्याति में बुद्धिवाला होवे, तथा गुणों करके बड़ा होवे, बहिन संतान रहित होवे, इन सर्व की पालना करे। अपने कुल में जो काम करने