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* ॐ नमः स्याद्वादवादिने *
जैनाचार्य न्यायाम्भोनिधि
श्री विजयानन्दसूरीश्वर (प्रसिद्ध नाम आत्मारामजी ) विरचित -
जैनतत्त्वादर्श
उत्तरार्द्ध
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सप्तम परिच्छेद
इस परिच्छेद में सम्यग्दर्शन का स्वरूप लिखते हैं:सम्यग्दर्शन का स्वरूप ऊपर लिख भी आये सम्यक्त्व के भेद हैं, तो भी भव्य जीवों के विशेष जानने के वास्ते कुछ और भी लिखते हैं । सम्यक्त्व के दो भेद हैं- एक व्यवहारसम्यक्त्व, दूसरा निश्चयसम्यक्त्व । जिनोक्त तत्त्वों में ज्ञान पूर्वक जो रुचि है, तिसको सम्यक्त्व कहते हैं । सो सम्यक्त्व, जिन तत्त्वों में यथार्थ रुचि उत्पन्न होने से होता है, सो तत्त्व तीन हैं । एक देवतत्त्व, दूसरा गुरुतत्त्व, तीसरा धर्मतत्त्व । जो पुरुष इन के विषे श्रद्धाप्रतीति करे, सो सम्यक्त्ववान् होता है । तिस श्रद्धा के दो