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नवम परिच्छेद
२३७ हाथ न जोड़े ५८. एक साडी का उत्तरासंग न करे, ५९. मुकुट मस्तक में रक्खे, ६०. मौलि-सिर का लपेटना रखे, ६१. फूल का सेहरा रक्खे, ६२, नारियल आदिक का छोत गेरे, ६३. गेंद से खेले, ६४. पिता प्रमुख को जुहार करे, ६५, मांड चेष्टा करे, ६६. तिरस्कार के वास्ते रेकारा तुकारा देवे, ६७. लेने वास्ते धरना देवे, ६८. संग्राम करे, ६९. मस्तक के केश सुखावे, ७०. पाठठी मार कर बैठे, ७१. काठ, पादुकादि पग में रक्खे, ७२. पग पसारे, ७३. सुख के वास्ते पुडपुड़ी दवावे, ७४. शरीर का अवयव धोके कीचड़ कूड़ा करे, ७५. पगादि में लगी हुई धूल झाड़े, ७६. मैथुनकामक्रीडा करे, ७७. जूआं गेरे, ७८. भोजन जीमे, ७९. गुह्य चिन्ह को ढक के न बैठे, ८०. वैद्यक का काम करे, ८१. क्रय विक्रय रूप वाणिज्य करे, ८२. शय्या बना के सोवे, ८३. पानी पीने के वास्ते जल का मटका रक्खे, तथा मन्दिर के पतनाले का पानी लेवे, ८४. स्नान करने की जगा बनावे । वह उत्कृष्ट चोरासी आशातना जिनमंदिर में वजे । . अब गुरु की तेत्तीस आशातना लिखते हैं । १. गुरु के
आगे चले, तो आशातना है। जेकर रस्ता गुरु की ३३ बतावने के वास्ते चले, तो आशातना नहीं आयातना होती है। २. गुरु के वरावर चले, ३. गुरु
के पीछे अड़के चले, यह जैसे चलने की तीन आशातना कही हैं, ऐसे ही बैठने की भी तीन आशावना
आशातना