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अष्टम परिच्छेद
१३३ २. मृषानंद रौद्रध्यान-सो झूठ बोल के खुशी होवे अरु मन में ऐसा चिंते कि मैं ने कैसी बात बना के करी, किसी को भी खवर न पड़ी। मैं बड़ा अकलमंद हूं, मेरे समान कौन है, मेरे सन्मुख कौन जवाव करने को समर्थ है। बोलना है, सो तो करामत है, वोलना किसी को ही आता है। इस अवसर में जेकर मैं न होता, तो देखते क्या होता । इस प्रकार मन में फूले और अपने दुश्मन को संकट में गेर कर मन में आनंद माने अरु कहे कि, देखा, मैं ने कैसी हिकमत करी। राज दरवार में लोगों की चुगली करके स्थानभ्रष्ट करे, मन में खुशी माने ।
३. चौर्यानंद रौद्र-भद्रक जीवों से कूड़कपट की बातें बना कर बहुमूल की वस्तु थोड़े दाम में ले लेवे, तथा पराया धन लेखे से अधिक लेवे। तथा चोरी करके किसी की वही में अधिक कमती लिख देवे, और आप पैसा खा नावे । अनेक कपट की कला से सेठ को राजी कर देवे, और पीछे से विचारे कि मैं कैसा चतुर हूं कि, पैसा भी खाया अरु सेठ के आगे सच्चा भी बन गया । तथा जब व्यापार करे, तव खोटी-झूठी सौगंद खावे, मीठा बोल कर दूसरों को विश्वास उपजा कर न्यून अधिक देवे लेवे, अरु मन में राजी होके कहे कि. मेरे समान कमाऊ कौन है । तथा चोरी करके मन में आनंद माने कि मैं ने कैसी चोरी करी कि, जिस की किसी को खबर भी नहीं पड़ी। तथा झूठ खतपत्र बनाकर