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जैनतत्त्वादर्श करना पड़े, तो व्रत भंग नहीं।
१४. भात पानी का नियम-सो चार आहार में से स्वादिम का तो तंबोल के नियम में परिमाण रक्खा है, शेष तीन आहार हैं। तिन में प्रथम अशन--सो भात, रोटी, कचौरी, सीरा प्रमुख, तिस का परिमाण करे कि, आज के दिन में इतना सेर मेरे को खाना है, उपरांत का त्याग है। जहां घर में बहुत परिवार होवे, तिस के वास्ते बहुत अशनादि कराने पड़े, तिस की जयणा रक्खे। तथा औरों के घरों में पंचायत जीमे, तहां जाना पड़े, वहां बहुत आदमियों की रसोई बना रक्खी है, उसका दूषण नियमधारी को नहीं। क्योंकि नियमधारी ने तो अपने ही खाने की मर्यादा करी है, परन्तु न्याति के खाने की मर्यादा नहीं करी है। इस वास्ते अपने खाने का परिमाण करे कि, इतने सेर के उपरान्त मैं आज नहीं खाऊंगा । तथा दूसरा पानी-तिसके पीने का परिमाण करे कि, इतने कलसों के उपरांत पानी मैं ने आज नहीं पीना। तथा तीसरा खादिम-सो मिठाई अथवा मिष्टान-मोदकादिक, तिनका परिमाण करे । यह चौदह नियम हैं। इहां अधिक भाववाला श्रावक होवे, सो सचितादि परिमाण में द्रव्य का परिमाण जुदा जुदा नाम लेकर रक्खे, तो बहुत निर्जरा होवे।