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________________ 46 जैनतत्त्वादर्श जो पशुओं का वध किया जाता है, वह भी स्वेच्छाचार से ही किया जाता है, इस में शास्त्र की आज्ञा बिल्कुल नहीं है, क्योंकि वेदार्थ को सब से अधिक जानने वाले धर्मात्मा मनु ने तो सर्व कर्म में अहिंसा की ही प्रशंसा की है। इस लिये बुद्धिमान पुरुष को शास्त्रानुसार ही धर्म का अनुष्ठान करना चाहिये क्योंकि अहिंसा ही सम्पूर्ण धर्मों में श्रेष्ठ है। (ख) * यज्ञों में मांस मदिरा आदि का विधान वेदों में नहीं है / यह तो काम मोह और लोभ के वशीभूत हो कर मांस लोलुपी धूर्त पुरुषों की चलाई हुई रीति है / ब्राह्मणों को तो सर्व यज्ञों में फल पुष्पादि से विष्णु भगवान् का यजन-पूजन करना ही अभीष्ट है। (ग) इस के अतिरिक्त पिता पुत्र के सम्बाद में शान्ति पर्व अध्याय 283 में लिखा है, कि पशुयज्ञः कथं हिंस्रैर्मादृशो यष्टुमहर्ति / अन्तवद्भिरिव प्राज्ञः क्षत्रयज्ञैः पिशाचवत् // 33 // www.nrn.rr......... .... .. ... ........ * सुरां मत्स्यान् मधु मांसमासवं कृसगैदनम् / धूतैः प्रवर्तितं ह्येतत् नैतद्वेदेषु कल्पितम् // 11 // कामान्मोहान्य लोभाच लौल्यमेतत् प्रवर्तितम् / विष्णुमेवाभिजानंति सर्वयज्ञेषु ब्राह्मणाः // 12 // [शा०प० अ० 271]
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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