________________ परिशिष्ट 47 यज्ञानुष्ठान के लिये पिता का आदेश होने पर पुत्र कहता है कि मेरे जैसा धर्मात्मा पुरुष पिशाच की तरह इन हिंसक यशों का अनुष्ठान किस प्रकार कर सकता है / इत्यादि अनेक स्थानों पर वैध यज्ञों को गर्हित ठहराया गया है / इस के अतिरिक्त श्रीमद्भागवत आदि पुराणों में भी इन यज्ञों की अवगणना की गई है परन्तु विज्ञजनों के लिये इतना ही पर्याप्त है।