________________ परिशिष्ट अनिर्वचनीय रजत आदि की जो ख्याति अर्थात् भान होना उस का नाम अनिर्वचनीय ख्याति है / इस प्रकार भ्रमस्थल में दार्शनिकों के छः मत हैं, जिन का अति संक्षेप से वर्णन किया गया है। परिशिष्ट नं० २--ख [पृ० 366] वैध हिंसा निषेधक वचन वैधयज्ञों-जिन में हिंसा की प्रचुरता देखने में आती हैको जैनों के अतिरिक्त उपनिषद् और महाभारत आदि में भी गर्हित बतलाया है। यथा 1 - (क) प्लवा ह्येते अढा यज्ञरूपा, अष्टादशोक्तमवरं येषु कर्म / एतच्छ्रेयो येऽभिनंदन्ति मूढा जरामृत्युं ते पुनरेवापि यति // 7 // (ख) इष्टापूर्त मन्यमाना वरिष्ठं, नान्यच्छ्यो वेदयंते प्रमूढाः।