________________ 40 জনাব ख्यातिवाद के नाम से प्रसिद्ध हैं / दार्शनिक ग्रन्थों की पर्यालोचना से इन तार्किको के उक्त भ्रमस्थल में छ: मत देखने में आते हैं / यथा-- 1. सत्ख्याति, 2. असतख्याति, 3. आत्मख्याति, 4. अन्यथाख्याति, 5. अख्याति, और 6. अनिर्वचनीयख्याति / 1. सत्ख्याति-सत्यातिवादी के सिद्धान्त में जिस प्रकार शक्ति सत्य है, उसी प्रकार रजत भी सत्य है, अर्थात् शुक्ति के अवयवों के साथ रजत के अवयव सदा रहते हैं; इस लिये जैसे शुक्ति के अवयव सत्य हैं, उसी प्रकार रजत के अवयव भी सत्य हैं / परन्तु सदोप नेत्र के सम्बन्ध से वहां पर सत्य रजत ही उत्पन्न होती है, और अधिष्ठानरूप शुक्ति के शान से सत्य रजत का अपने अवयवों में ध्वंस हो जाता है, अतः सत् पदार्थ का ही उक्त भ्रमस्थल में भान होता है, मिथ्या का नहीं। यह मत सत्कार्यवादी का है। 2. असत्ख्याति-शून्यवादी बौद्ध के मत में असत्ख्याति का अंगीकार है / उस के मत में जिस प्रकार रज्जु में सर्प और शुक्ति में रजत अत्यन्त असत् है, वैसे ही दुकान में भी अत्यन्त असत् है, इस लिये अत्यन्त असत रूप सर्प और चांदी की जो रज्जु और शुक्ति में प्रतीति-ज्ञान होना उस का नाम असतूख्याति है। , 3. आत्मख्याति-यह सिद्धांत क्षणिक विज्ञानवादी यौद्ध का है / उस का कथन है कि शुक्ति में तथा अन्यस्थान