________________ जैनतत्त्वादर्श नहीं हुई, इसलिये वस्तु में वर्तमानकाल में जो निज पर्याय विद्यमान है, उसी को अंगीकार करना युक्तियुक्त है / क्योंकि अतीत - अनागत और परकीय भाव से कभी कार्य की सिद्धि नहीं होती। . जैसे पूर्व जन्म का पुत्र और आगे को होनेवाला पुत्र वर्तमान राजपुत्र नहीं हो सकता, उसी प्रकार वस्तु के अतीतानागत पर्यायों से भी वस्तु के स्वरूप का निरूपण नहीं किया जा सकता / इस लिये भूत और भविष्यत् काल का परित्याग करके केवल वर्तमान काल में जिस प्रकार के गुणधर्मों से जिस रूप में वस्तु विद्यमान हो, उसी रूप में उस को ग्रहण करना ऋजुसूत्र नय है / वौद्ध दर्शन में इसी नय को अंगीकार किया गया है। 5. शब्द नय-वाच्यार्थ का अनेक शब्दों द्वारा निर्देश किये जाने पर भी उसे एक ही पदार्थ समझना शब्द नय है / इसी प्रकार लिंग संख्यादि के भेद रहने पर भी उसे एक स्वीकार करना शब्द नय कहलाता है / जैसे कलशकुंभ आदि अनेक शब्दों के द्वारा सम्बोधित होने वाला एक ही घट पदार्थ है / तया 'तट:', 'तटी' आदि में लिंग भेद रहने पर भी इन का वाच्य एक ही तट पदार्थ है / तात्पर्य कि इस नय के अनुसार पर्यायवाचक शब्दों में भेद होने पर भी वाच्यार्थ में भेद नहीं होता ! संख्या वचन में 'दारा' और 'कलत्र' इन। शब्दों को समझ लेना चाहिये,