________________ परिशिष्ट 37 2. संग्रह–अनेक पदार्थों में एकत्व बुद्धि का समर्थक संग्रह नय है, संग्रह नय वस्तु के केवल सामान्यधर्म-सत्ता को ही स्वीकार करता है, उस के मत में सामान्य से अतिरिक्त किसी विशेष धर्म की सत्ता स्वीकृत नहीं। आम नीम आदि भिन्न भिन्न सभी प्रकार के वृक्षों का जैसे वनस्पति शब्द से ग्रहण होता है, उसी प्रकार विशेष धर्मों का सामान्य-सत्तारूप से यह नय संग्रह करता है / अतः इस नय के अनुसार सामान्य से अतिरिक्त विशेष नाम का कोई धर्म नहीं है / वेदांत और सांख्य दर्शन ने इसी नय को स्वीकार किया है। 3. व्यवहार नय-वस्तु में रहे हुए सामान्य और विशेष इन दो में से केवल विशेष धर्म को ही मानता है, उस के मत में विशेष से अतिरिक्त सामान्य कोई वस्तु नहीं / जैसे कि वनस्पति के ग्रहण का आदेश होने पर भी उस के आम नीम आदि किसी विशेषरूप का ही ग्रहण किया जाता है, वनस्पति सामान्य का नहीं / / अतः सामान्य रूप में भी विशेष का ही ग्रहण शक्य है और इष्ट है / चार्वाक दर्शन ने इसी नय को अंगीकार किया है। : 4. ऋजुसूत्र नय-वस्तु के केवल पर्याय को ही मानता है, अतीत और अनागत को नहीं, उस के मत में वस्तु के अतीत पर्याय का नाश होने से वर्तमान में उस का प्रभाव हैं, और भविष्यत् काल.के पर्याय की अभी तक उत्पत्ति ही