________________ परिशिष्ट 35 समभिरूंढ़ और एवंभून से चार भेद हैं / इस प्रकार समस्त नयों का इन सातों में समावेश किया गया है / नय के इन सात प्रकारों का कुछ अधिक विवेचन किया जावे, इस से प्रथम पदार्थ में रहने वाले सामान्य तथा विशेष धर्म का ज्ञान कर लेना आवश्यक है। 'सामान्य'-जाति आदि को कहते हैं, और 'विशेष' भिन्न भिन्न व्यक्तियों से 'सम्वन्ध रखता है / सामान्य धर्म भिन्न भिन्न व्यक्तियों में जातिरूप एकत्व बुद्धि का उत्पादक है, जैसे सैकड़ों मनुष्य व्यक्ति की अपेक्षा भिन्न भिन्न है, परंतु हर एक में मनुष्यत्व जातिरूप समान्य धर्म एक है, अर्थात् मनुष्यत्वरूप से वे संब एक हैं। इस लिये सामान्य धर्म विभिन्न व्यक्तियों में एकता का उत्पादक है। और विशेष धर्म से प्रत्येक व्यक्ति का एक दूसरे से भेद बोधित है / क्योंकि व्यक्ति स्वयं विशेषरूप-भेदरूप है, और उस में रहा हुआ व्यक्तिगत गुण भी विशेष रूप है, इस लिये एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्नरूप है / जैसे मनुष्यत्व रूप सामान्य धर्म से सभी मनुष्य व्यक्तिये एक है, तथापि व्यक्तिगतं विशेष धर्म को ले कर एक दूसरे से भिन्न है, कारण कि प्रत्येक व्यक्ति में रहे हुए विशिष्ट गुण उस की पारस्परिक विभिन्नताओं के नियामक हैं, इस लिये वस्तुगत सामान्य और विशेषधर्म की अपेक्षा उस को वस्तु को सामान्य और विशेष उभयरूप माना गया है / इस