________________ 32 जैनतत्त्वादर्श सात परिषह उत्पन्न होते हैं * / तथा वेदनीय कर्म यह ऊपर वर्णन किये गये सर्वज्ञ में होने वाले ग्यारह परिषहों के कारण हैं। यहां पर इतना और समझ लेना चाहिये कि एक जीव में एक ही साथ समस्त बावीस परिषहों की सम्भावना नहीं हो सकती, क्योंकि उन में कितनेक परस्पर विरोधी परिषह भी हैं / यथाशीत,उष्ण चर्या और शय्या इत्यादि / जब शीत होगा तव उष्ण नहीं और जब चर्या होगी तो शय्या -नहीं, इसी प्रकार इस के विपरीत भी समझ लेना / इस लिये एक ही काल में एक जीव में एक से लेकर अधिक से अधिक उन्नीस परिपहों की सम्भावना की जा सकती है। * चारित्रमोहे नाग्न्यारतिस्त्री निषद्याक्रोशयाचनासत्कारपुरस्काराः / .[तवा० 9-11] | वेदनीये शेषाः। [तस्वा० 6-16] $ एकादयो भाज्या युगपदेकोनविशतेः। तस्वा० 9-17]