________________ परिशिष्टः (ग) *वादरसम्पराय नाम के नवमे गुणस्थान में विचरने वाले जीव के तो 22 परिषहों की संभवता है / क्योंकि परिषहों के कारण कर्मों की सत्ता वहां पर मौजूद है। इस के अतिरिक्त यह बात तो अर्थतः सिद्ध है कि जब नवमे गुणस्थानवी जीव में ये वावीस ही परिषह विद्यमान हैं तो इस के पूर्ववर्ती छठे आदि गुणस्थानों में तो उन की पूर्ण रूप से विद्यमानता है ही। 'परिपेहों के कारण का निर्देश जैन सिद्धान्त के अनुसार अनुभव में आने वाले प्राकृतिक सुख दुःख की व्यवस्था अध्यवसायानुसार वान्धे हुए शुभा-शुभ कर्मों पर ही अवलम्बित है / इसी के अनुसार उक्त वावीस परियों का कारण अथवा निमित्त भी ज्ञानावरणीय, मोहनीय, वेदनीय और अन्तराय यह चार कर्म हैं। इन में ज्ञानावरण तो प्रना और अज्ञान परिषह का कारण है / दर्शन मोहनीय और अन्तराय यह क्रमशः अदर्शन और अलाभ परिषह के कारण हैं / एवं चारित्र मोहनीय से अचेलकत्व, अरति, स्त्री, निषद्या, आक्रोश, याचना, और सत्कार ये * वादर सम्पराये सर्वे / [तत्त्वा० 9-12] x ज्ञानावरणे प्रज्ञाज्ञाने। [तत्त्वा० 6-13] + दर्शनमोहान्तराययोरदर्शनालाभौ। तिवा० 6-14]