________________ जैनतवादर्श किस गुणस्थानवर्ती जीव में कितने परिपह होते हैं ? ' (क) 10 सूक्ष्म सम्पराय 11 उपशान्त मोह और 12 क्षीणमोह, इन तीन गुणस्थानों में क्षुधा, पिपासा, शीत, उष्ण, दंशमशक, चर्या, प्रज्ञा, अज्ञान, अलाभ, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श और मल, ये * चौदह ही परिषह होते हैं, वाकी के आठ नहीं होते / कारण कि ये आठ मोहजन्य हैं / परन्तु ग्यारहवें तथा बारहवें गुणस्थान में मोह का उदय है नहीं और दश गुणस्थान में तो यद्यपि मोह विद्यमान है, परन्तु वह इतना स्वल्प है. कि होने पर भी उसे न होने जैसा ही समझना चाहिये / इस लिये इन उक्त गुणस्थानवर्ती जीवों में मोहजन्य इन बाकी के आठ परिपहों की संभावना नहीं हो सकती। - (ख) 13 वें सयोगिकेवली और 14 वे अयोगिकेवली गुणस्थान में तो मात्र क्षुधा, पिपासा, शीत,- उष्ण देशमशक, चर्या, शय्या, वध, रोग, तृणस्पर्श, और मल इन 6 ग्यारह का ही सम्भव है। वाकी के ग्यारह की इन में संभावना नहीं हो सकती। क्योंकि ग्यारह घाति कर्म जन्य हैं / परन्तु 13 वें 14 गुणस्थान में घातिकमाँ का अभाव है, इस लिये इन में उक्त वाकी के ग्यारह परिपहों की सम्भावना नहीं हो सकती। * सूक्ष्म संपरायच्छास्थयोतरागयोश्चतुर्दश / [तत्त्वा० 9-10] एकादश जिने / [तत्वा० 9-11]