________________ परिशिष्ट 26 और सर्वाधिष्ठातृत्व की प्राप्ति हो जाती है / उपर्युक्त उदाहरणों से उक्त जैन सिद्धांत का कितने अंश में समर्थन होता है, इस का निर्णय विचारशील पाठक स्वयं कर लेवें। परिशिष्ट नं०-१-ग [ पृ० 21] परिषह आस्रव के निरोध का नाम संवर है, वह यद्यपि सामान्य रूप से एक ही प्रकार का है तथापि उपाय के भेद से उस के अनेक भेद वर्णन किये गये हैं, परन्तु सक्षेप से उस के सात भेद हैं। इन्ही सात में से परिषह भी एक है। परिषह का लक्षण + अंगीकार किये हुए धर्ममार्ग में दृढ़ रह कर कर्मवन्धनों को तोड़ने के लिये, उपस्थित होने वाली विकट स्थिति को भी समभाव पूर्वक सहन करने का नाम परिषह है। . संख्या-परिषह वावीस हैं, उन के नाम और अर्थ का निर्दोश इसी अन्य के पृ० 456 से 461 में विस्तार पूर्वक किया गया है। rammarraimmmmmmmmmmmmmmmivore + + मार्गाच्यवननिर्जरार्थ परिषोढव्याः परिषहाः। तत्त्वा० -8]