________________ 28 जैनतत्त्वादर्श तदक्षरं वेदयते यस्तु सौम्यः स सर्वशः सर्वमेवाविवेश / [प्रश्न० उ०,४-११] अर्थात जो उस ब्रह्म को जान लेता है; वह सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो जाता है / तथा न पश्यो मृत्यु पश्यति न रोगं नोत दुःखं सर्व ह पश्यः पश्यति सर्वमाप्नोति सर्वशः। [छां० उ०, 7-26-2] अर्थात् तत्त्ववेत्ता (केवलज्ञानी) मृत्यु को नहीं देखता, न किसी प्रकार के रोग और दुःख को प्राप्त होता है, सर्व को देखता और सब कुछ प्राप्त कर लेता है / एवं स स्वराड् भवति तस्य सर्वेषु लोकेषु कामचारो भवति / छो० उ०७-२५–२] सर्वेऽस्मै देवा बलिमावहन्ति / तै० उ०१-५१ अर्थात वह सव का राजा होता है, और सभी देवता उस की पूजा करते हैं / इस के अतिरिक्त योग दर्शन में लिखा है कि सत्त्वपुरुपान्यताख्यातिमात्रस्य सर्वभावाधिष्ठातृत्वं सर्वज्ञातृत्वं च। - [3-46]. अर्थात् विवेकान्यताख्याति वाले पुरुष को सर्वशत्व