________________ जैनतत्त्वादर्श भी : तत्त्वनिर्णयप्रासाद में #आगम के प्रमाण द्वारा इसी बात को समर्थन किया, है / इस विषय में और भी कई -एक आचार्यों के उल्लेख देखने में आये हैं, परन्तु विस्तारभय -से उन का निर्देश नहीं किया जाता। __ सब से अधिक विचारणीय बात यह है, कि आचार्य श्री हेमचंद्र सूरि ने प्राकृत भाषा के अतिरिक्त शौरसेनी, मागधी और पैशाची आदि भाषाओं के नियमों का उल्लेख किया, परन्तु आगम स्थित सर्वतः प्रिय अर्धमागधी भाषा के विषय में उन्हों ने किसी स्वतंत्र नियम (व्याकरण) की रचना नही की। इस से प्रतीत होता है कि आर्ष * प्राकृत की भांति अर्धमागधी को वे प्राकृत भाषा में ही ... .. .. .. .. ... ........ ...... ......~~~~~~~ * यदुक्तमागमेमुत्तण दिहिवायं कालिय उकालियंग सिद्धतम् / थीवालवायणत्यं पाइयमुइय जिणवरेहिं // अर्थ-दृष्टिवाद को वर्ज के कालिक उत्कालिक अंगसिन्द्रात को स्त्री वालकों के वाचनार्थ जिनवरों ने प्राकृत में कथन करे हैं। वालस्त्रीवृद्धमूर्खाणां नृणा चारित्रकाक्षिणाम् | उच्चारणाय तत्त्वज्ञः सिद्धान्तः प्राकृतः कृतः॥ ' ... .... .इस वास्ते ही अरिहन्त भगवन्तों ने एकादशांगादि शास्त्र प्राकृत में करे हैं। . [तत्त्वनिर्णय प्रासाद पृ० 4 12-13]