________________ परिशिष्ट 4. *भाषार्य-भाषा की दृष्टि से भी वही आर्य कहला सकता है, जो कि अर्धमागधी भाषा का उपयोग करे। इत्यादि प्रागम वाक्यों के पर्यालोचन से निश्चित होता है, कि अर्धमागधी सर्व श्रेष्ठ, देवप्रिय तथा आर्य भाषा है, इस लिये समस्त जैनागम इसी भाषा से अलंकृत हुए हैं। परन्तु अर्धमागधी का सामान्य अर्थ और उसकी प्रामाणिक प्राचार्यों द्वारा की गई व्याख्या का विचार करते हुए एक विचार शील पुरुष को जैनागमों की भाषा को अर्धमागधी कहने की अपेक्षा उसे प्राकृत भाषा कहना व स्वीकार करना कुछ अधिक सङ्गत प्रतीत होगा। ___ अर्धमागधी की व्याख्या संस्कृत के अतिरिक्त लौकिक भाषाओं के-१. प्राकृत, 2. शौरसेनी, 3. मागधी, 4. पैशावी, 5. चूलिका पैशाची, और अपभ्रंश, यह छः भेद हैं। व्यापकता की दृष्टि से औरों की अपेक्षा प्राकृत भाषा अधिक महत्त्व रखती है, अस्तु, मागधो का सामान्य अर्थ यह होता है कि जिसमें मागधी भाषा का अर्ध भाग हो, अर्थात् उस के शब्दों में अर्ध भाग मागधी का हो और अर्ध दूसरी भाषा का / तथा प्रामाणिक आचार्यों ने इस की जो व्याख्या की है, वह इस प्रकार है * भासारिया जेणं अद्धमागहीए भासाए भामेति। [प्रज्ञा. सू०, आग० स०, पृ० 56 ] 1