SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 612
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ হাজী क कंचन सोना काढना पं० निकालना कंठ रहती नहीं याद नही रहतो कारणे कारण से कच्छु 50 कछुआ कालात्ययापदिष्ट वाधित हेत्वाभास कछुक थोडा सा, कुछ काहे को किस लिये कतरणी कैची कितनेक कई एक, कुछ कदन्न अपवित्र-खराब अन्न क्रियाकलाप क्रिया का समूह कदे भी पं० कभी भी किकर दास कर्मरज कर्म रूपी धूली कीना था किया था करके द्वारा से कुथित सडा हुआ करतलामलकवत् हाथ में रहे | कुलकर प्रथम नीति चलाने वाले हुए आवले की तरह कुम्भी पाक पा० नरक विशेष, करा किया जहा जीव को घड़े की तरह कराय के पं० करा कर | पकाया जाता है। करिये पं० करें कुलिगी बुरे आचरण वाले करी से कुक्षिभर पेट भरने वाले करी है की है कोकिलावत कोयल की तरह करे है करता है कोटाकोटि पा० क्रोडों कलत्र स्त्री कोथली थैली कलल गर्भ की पहली अवस्था (क्रमोत्क्रम क्रम से, नम्बरवार कल्लोल बडी लहर | क्योंकर कैसे
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy