________________ जैनतत्त्वादर्श है। क्योंकि आत्मा किसी प्रमाण से भी सर्वलोकव्यापी सिद्ध नहीं हो सकती है / इस की विशेष चर्चा देखनी होवे, तो स्थाद्वादरलाकरावतारिका देख लेनी / तया जो मोक्ष होकर फिर संसार में जन्म लेना, फिर मोच होना, यह तो मोक्ष भी काहे की ? यह तो भांडों का सांग हुआ / इस वास्ते यह भी ठीक नहीं / अरु जो मोक्ष में स्त्रियों के भोग मानते हैं, सो विषय के लोलुपी हैं। तथा खरड़झानी ने जो मोक्ष कही है, सो भी अप्रामाणिक है, किसी प्रमाण से सिद्ध नहीं है, इस वास्ते जो अहंत संर्वज्ञ ने मोच कही है, सो निर्दोष है। इस प्रकार यह चौदह गुणस्थानों का स्वरूप वृहद्गच्छीय श्रीवज्रसेनसूरि के शिष्य श्रीहेमतिलकसूरिपट्टप्रतिष्ठित श्रीरत्नशेखरसूरि ने लिखा है, तिस के अनुसार ही भाषा में गुणस्थान का किंचितस्वरूप मैंने लिखा है। इति श्री तपागछीय मुनि श्रीवुद्धिविजय शिष्य मुनि आनदविजय-आत्माराम विरचिते जैनतत्त्वादशैं षष्ठः परिच्छेदः संपूर्णः