________________ जैनतत्त्वादर्श शान दर्शन और चरित्र द्वारा जिस की सिद्धि के वास्ते प्रयत्न करते हैं, योगी लोग जिस के वास्ते निरंतर ध्यान करते हैं / उस परम पुनीत पद को सिद्धों ने प्राप्त किया है / यह सच्चिदानन्द स्वरूप पद अभव्य जीवों को सर्वथा दुर्लभ है। _ अथ मुक्ति का स्वरूप कहते हैं। कोई एक वादी अत्यंताऽभावरूप मोक्ष मानते हैं / सो बौद्धों की मोन है / अरु कोई वादी जडमयी-ज्ञानाभावमयी मोक्ष मानते हैं, सो नैयायिक वैशेषिक मत वाले हैं / अरु कोई एक वादी मोक्ष होकर फिर संसार में अवतार लेना, फिर मोक्षरूप हो जाना, ऐसी मोक्ष मानते हैं, सो आजीवक मत वाले हैं। अरु कोई तो विषयसुखमय मोक्ष मानते हैं / वे कहते हैं, कि मोक्ष में भोग करने के वास्ते बहुत अप्सरा मिलती हैं / और खाने पीने को बहुत वस्तु मिलती है, तथा पान करने को बहुत अच्छी मदिरा मिलती है, और रहने को सुंदर बाग मिलता है, इत्यादि / तथा कोई एक वादी कहते हैं कि मोद, जीव की कदापि नहीं होती, यह जैमिनी मुनि का मत है / तथा कोई खरड़शानी ऐसे कहते हैं, कि जो वेदोक्त अनुष्ठान करता है, वो सर्वथा उपाधि रहित तो नहीं होता, परन्तु शुभ पुण्य फल मे सुंदर देह पाकर ईश्वर के साथ मिल कर कितनेक कल्पों लगि सुख भोग करता है, जहां इच्छा होवे, तहां उड़ कर चला जाता है, फिर संसार में