________________ षष्ठ परिच्छेद सर्व सामान्यविशेषात्मक है। अथ सिद्धों के आठ गुण कहते हैं / 1. सिद्धों को ज्ञाना. वरण कर्म के क्षय होने से केवल ज्ञान प्रगट सिद्धावस्था हुआ है / 2. सिद्धों को दर्शनावरण कर्म के क्षय होने से अनन्त दर्शन हुआ है / 3. सिद्धों को क्षायिकरूप शुद्ध सम्यक्त्व और चरित्र दर्शनमोहनीय और चारित्रमोहनीय के क्षय होने से हुए हैं। 4. सिद्धों को अनंत-अक्षय सुख अरु 5. अनंत वीर्य / वेदनीय कर्म के क्षय होने से अनंत सुख हुआ है, और अंतराय कर्म के क्षय होने से अनंत वीर्य प्रगट हुआ है / तथा 6. सिद्धों की अक्षयगति आयुःकर्म के क्षय होने से हुई है / 7. नामकर्म के क्षय होने से अमूर्तपना सिद्धों को प्रगट भया है / 8. गोत्र कर्म के क्षय होने से सिद्धों की अनंत अवगाहना है। अथ सिद्धों का सुख कहते हैं / जो सुख चक्रवर्ती की पदवी का, अरु जो सुख इन्द्रादि पदवी का है, तिस से भी सिद्धों का सुख अनंत गुणा है / वो सुख क्लेश रहित है / अर्थात् "अविद्यास्मितारागद्वेषाभिनिवेशाः क्लेशा"-अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष, अभिनिवेश, यह क्लेश हैं, सो जिनमें नहीं हैं / फिर कैसा है सुख ? "अव्ययं-न व्येति--स्वभाव से जो नाश नहीं होता। ____अथ सिद्धों ने जो कुछ प्राप्त किया है, तिस का सार कहते हैं / अराधक जिस वस्तु का आराधन करते हैं, साधक पुरुष