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________________ षष्ठ परिच्छेद 551 णमन करना, तिस का नाम समुद्घात है / सो समुद्घात सात प्रकार का है-१. वेदनास०, 2. कषायस०, 3. मरणस०, 4. वैक्रियस० 5. तेजःस०, 6. आहारकस०, 7. केवलिस० / इन सातों समुद्घातों में से यहां पर केवलिसमु द्घात का ग्रहण करना / तिस केवलिसमुद्घात के वास्ते केवली भगवान् आयु अरु वेदनीय कर्म को सम करने के वास्ते प्रथम समय में आत्मप्रदेशों करके ऊर्द्धलोकांत तक दंडत्व-दंडाकार लेवे आत्मप्रदेश करता है, दूसरे समय में पूर्व, पश्चिम दिशा में आत्मप्रदेशों को कपाटाकार करता है, तीसरे समय में उत्तर, दक्षिण में आत्मप्रदेशों को मंथानाकार करता है, चौथे समय में अंतर पूर्ण करने से सर्व लोक व्यापी होता है / इस तरे केवली समुद्घात करता हुआ चार समयों में विश्वव्यापी होता है। अथ इहां से निवृत्ति कहते हैं / इस प्रकार से केवली आत्मप्रदेशों को विस्तार करने के प्रयोग से कर्मलेश को सम करता है / सम करके पीछे तिस समुद्घात से उलटा निवर्तता है / सो ऐसे है केवली चार समय में जगत् पूर्ण करके पांचमे समय में पूर्ण से निवर्तता है, छठे समय में मंथानपना दूर करता है, सातमे समय में कपाट दूर करता है, आठमे समय में दंडत्व का उपसंहार करता हुआ स्वभावस्थ होता है। यदाहुर्वाचकमुख्या:
SR No.010064
Book TitleJain Tattvadarsha Purvardha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages495
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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