________________ 550 जैनतत्त्वादर्श के मुख नहीं ? इस वास्ते यही सत्य है, कि जो तीर्थकर. नामर्कम के वेदने के वास्ते भगवान् उपदेश करते हैं, अरु जिस वखत उपदेश करते हैं, उस वखत देहधारी होते हैं। इत्यल प्रसंगेन / केवली-केवलज्ञानवान् पृथ्वी मण्डल में उत्कृष्ट आठ वर्ष न्यून पूर्वकोटि प्रमाण विचरते हैं, और देवताओं के करे हुए कंचनकमलों के ऊपर पग रख कर चलते हैं, अरु आठ प्रातिहार्य करके संयुक्त, अनेक सुरासुरकोटि से सेवित होकर विचरते हैं / यह स्थिति सामान्य प्रकार से केवलियों की कही है, अरु जिनेंद्र तो मध्यास्थिति वाले होते हैं। अथ केवलिसमुद्घातकरण कहते हैं। चेदायुषः स्थितिन्यूना, सकाशाद्वैद्यकर्मणः। तदा तत्तल्यतां कर्तुं समुद्धातं करोत्यसौ / / [गुण० क्रमा० श्लो० 89] अर्थ:-केवली जव वेदनीय कर्म से आयुःकर्म की स्थिति को थोडी जानता है, तब तिस को तुल्य केवलिसमुद्घात करने वास्ते समुद्घात करता है / तिस समुद्घात का स्वरूप कहते हैं / तिस समुद्घात . तहां प्रथम समुद्घात पद का अर्थ कहते हैं / यथा स्वभावस्थित आत्मप्रदेशों को वेदनादि सात कारणों करके समंतात् उद्घातन-स्वभाव से अन्य भावपने परि